19 जुलाई द लास्ट लैटर - 1 saurabh dixit manas द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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19 जुलाई द लास्ट लैटर - 1

#19_जुलाई “#द_लास्ट_लैटर”...........#मानस
#भाग-1 “सौरभ! अगर हम कभी रात में किसी जंगल से गुजरें और शेर आ जाय तो.....” टीना के रोमांटिक होकर कहते ही सौरभ उसकी आँखों में आँखें डालकर धीरक से बोला-
“मेरी टीनू.... मेरी ट्वीटी! जंगल में शेर आ गया तो मै उससे कहूँगा....”
“क्या कहोगे...?” उसने और पास आकर पूछा।
“मै उससे कहूँगा कि...”
“क्या कहोगे...? बोलो ना...”
“मै उससे कहूँगा कि... मुझे छोड़ दे और तुझे खा जाय। हाहाहा...”
“ए! सच-सच बोलो ना....क्या कहोगे...?” उसने सौरभ को प्यार से मारते हुए पूछा।
“एक बात बताओ ट्वीटी! हम उस जंगल में जायेंगे ही क्यों जहाँ शेर हो...और वो भी रात में। पागल समझा है क्या?” सौरभ ने मजाक करते हुए कहा।
“तुम भी ना.... कितने अनरोमांटिक हो....” कहकर उसके बेंच से धक्का मारते ही सौरभ नीचे गिर पड़ा- ‘धड़ाम...’
जब उसकी आँख खुली तो जंगल में अकेला घायल पड़ा था।
‘आज मैं भी हूँ, जंगल भी है पर तुम नहीं हो ट्वीटी...’ धीरे से बुदबुदाते हुए वो उठने की कोशिश करने लगा पर फिर गिर गया। ‘आह! दर्द कुछ ज्यादा हो रहा है, उफ्फ..!! उसने देखा बड़ी-बड़ी चीटियाँ उसके शरीर की दावत की तैयारी में थीं। कुछ तो उसके ऊपर चढ़कर भंगड़ा करने की तैयारी कर रही थीं और कुछ चीटियों ने तो उसकी बेहोशी का फायदा उठाकर घाव वाली जगह पर जमकर पार्टी करना शुरू भी कर दिया था। मेजर रावत जमीन पर घिसटता हुआ एक पेड़ के पास पहुँचा।
“अभी जिन्दा हूँ बे..!!!” कहते हुए हिम्मत करके वो झटके से उठा और एक हाथ से पेड़ का सहारा लेकर चीटियों को अपने शरीर से झाड़ने लगा। प्यास से उसका गला रेगिस्तानी बालू सा सूख गया था। चीटियों को भगाकर वो वहीं तने सेे टिककर बैठ गया।
“मेरी जान से पहले तुम छोड़कर मत जाना।” उसने अपनी जेब से एक पुराना लैटर निकालकर उसे चुमते हुए कहा। अभी तक उसके पैर का घाव लगातार रिस रहा था जिससे उठता दर्द उसकी साँसों के बीच-बीच में ‘आह’ बनकर निकलता जा रहा था। बुरी तरह घायल और थक चुके मेजर रावत की तेज साँसें और धड़कनें एक दूसरे को हराने की फिराक में थीं।
“तू कहाँ छिपी है...?” घुटने के नीचे धसी गोली से भुनभुनाते हुए कहकर उसने अपनी गन एक ओर रखी और अपने जूते खोलकर दूसरी ओर पटक दिए। हाँफते हुए उसने दाहिने हाथ से बैल्ट पर बँधे छुरे को निकाला और बायें पैर की वर्दी को काटते हुए बोला-
“तुम्हारा अन्दर ही रहने का इरादा है क्या?“ ‘कहाँ हो तुम...?’ बोलते हुए उसने एक झटके से गोली बाहर निकाल दी। गोली निकालते ही उसकी चीख निकल गई पर उसने अपने बायें हाथ से अपना मुँह जोर से दबा लिया जिससे आवाज न हो और थोड़ी ही देर मंे बेहोश हो गया।
होश में आकर उसने हिम्मत की और अपने जूते पहने फिर बन्दूक को बैसाखी की तरह लेकर डगमगाता हुआ पानी को ढूँढ़ने निकल पड़ा। ‘ये हुई ना बात....’ कुछ दूरी पर एक झरने को देखकर उसके मुँह से निकला ही था कि-
‘ताड़-ताड़’ गोलियों की आवाज सुनते ही झटके से नीचे बैठ गया। काफी देर ऐसे ही बैठे इंतजार करते हुए जब कोई हरकत नहीं हुई तो उसने चुपचाप खड़े होकर इधर-उधर देखा पर कोई भी नजर नहीं आया। रात भी होने वाली थी इसलिए जल्दी से दबे पांव झरने के पास जाकर उसने पानी पिया और अपने घाव को अच्छे से धोकर कपड़ा बाँध लिया। रात बिताने के लिए पेड़ के ऊपर जाकर बैठ गया।
पेड़ों पर जुगनू सितारों की तरह चमक रहे थे। हल्की चाँदनी रात को और खूबसूरत बना रही थी। उसने अपनी वर्दी की जेब से लैटर को निकालकर एक नजर देखा फिर अपनी छाती से लगाकर कहा- “उफ्फ...वो 19-जुलाई...."...क्रमशः
#मानस